धम्म सेवा का उद्देश्य

धम्म सेवा पर गोयन्काजी द्वारा ब्लैकहीथ विपश्यना ध्यान केंद्र, न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में दिया गया निम्नलिखित भाषणसे कुछ उद्धरण है.

धम्म सेवा का उद्देश्य क्या है? निश्चित रूप से भोजन और आवास प्राप्त करने के लिए नहीं है, न ही एक आरामदायक वातावरण में समय पारित करने के लिए, और न ही दैनिक जीवन की जिम्मेदारियों से बचने के लिए. धम्म सेवकों को यह अच्छी तरह से मालूम है.

ऐसे व्यक्तियो को जिन्होने विपश्यना का अभ्यास किया है और उससे जो लाभ मिलता है इसका उनको प्रत्यक्ष अनुभव हो गया है. उन्होने आचार्यों की निःस्वार्थ सेवा, प्रबंधन और धम्म सेवकोंकी सेवा जिससे उन्हे धम्म का अतुलनीय स्वाद चखनेको मिला यह देखा है.उन्होने महान पथ पर कदम उठाने शुरू कर दिये है, और जो कुछ उन्हे प्राप्त हुआ है उस कर्ज को चुकानेके लिये कृतज्ञता की दुर्लभ भावना जागृत हुई है.

अर्थात आचार्य, प्रबंधन और धम्म सेवक बदले में कुछ भी पाने के बिना उनकी सेवा देते है, और न ही वे किसी घन का स्वीकार करेंगे. उनके लिये धम्मचक्र प्रवर्तित रखना, दूसरोंको ऐसीही नि: स्वार्थ सेवा देना यही एक ऋण चुकानेका रास्ता है. यह एक सद्भावना है जिससे धम्म सेवा दी जाती है.

जैसेही विपश्यना साधक पथ पर प्रगति करता है, वे स्वयंकेंद्रितता की पुरानी आदत से बाहर आना और दूसरों के साथ स्वयं को सोचना शुरू करता हैं.युवा या वृद्ध, पुरुषों या महिलाओं, काला या सफेद, अमीर या गरीब, सभी पीड़ित हैं: यह सब लोग हर जगह कैसे पीड़ित हैं यह उनको ज्ञात हुआ. साधकको एहसास होता है कि वह धम्म मिलनेके पहले खुद कितने दुःखी थे. वे जानते हैं कि अपने जैसेही दूसरोंने भी पथ का अनुसरण करके सच्चा सुख और शांति का आनंद लेना शुरू कर दिया है. इस बदलाव को देखकर विपश्यना की सहाय्यतासे दुखी लोगोंको उन्हे बाहर आनेके लिये सहृदय खुशी की भावना और मदत देनेकी दृढ इच्छा को चालना देता है. करुणा उमडती है, और इसके साथ दूसरों को अपने दुख से राहत मिलनेको मदद करने की इछा उत्पन्न होती है.

निश्चितही परिपक्वता विकसित होनेमे और धम्म को पढ़ाने का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए कुछ समय लगता है. लेकिन कई अन्य तरीके है जिससे शिविर मे शामिल हुए लोगोंकी सेवा कर सकते है, और वह सभी अमूल्य हैं. सही मायने में यह एक सरल, विनम्र धम्म सेवक होने की एक महान आकांक्षा है.

और जो लोग विपश्यना के अभ्यास कर रहे है उनको यह भी समझमे आता है कि प्रकृती के नियम के अनुसार शरीर या वाणी की वह क्रिया जो दूसरों के लिए नुकसान का कारण बनती है वह यह क्रिया करनेवालों को भी नुकसान पहुचाती है. जबकि जिस कर्मसे दूसरों की मदद होती है, वह कर्म करने वालों के लिए शांति और खुशी लाएगी. इस प्रकार, दूसरों की मदद भी अपने आप को मदद है. इसलिये अपने हित के लिये सेवा देनी चाहिये. ऐसा करने से अपनी पारमी विकसित होती है और इस मार्गपर निश्चित रुपसे और जल्दी आगे बढ पाते है. दूसरों की सेवा, वास्तव में, यह भी अपने आप की सेवा है. इस सच्चाई को समझनेसे दूसरों को अपने दुख से बाहर आने के लिए मदद करने के इस महान मिशन में शामिल होने की इच्छा को प्रेरणा होती है.

लेकिन सेवा करने के लिए सबसे अच्छा तरीका क्या है? यह जाने बिना, सेवक दूसरों कि या खुद की मदद नहीं कर सकते हैं; इसके बजाय, वे नुकसान भी कर सकते है. हालांकि धम्म मिशन नोबल है, पर इसे पूरा करने के लिए अगर सेवकों की इच्छा निर्दोष न हो तो मदद करने में कोई सच्चा लाभ नही मिलेगा. सेवा फायदेमंद नहीं होगी अगर यह सेवकों के अहंकार को बढावा देनेके लिये, या बदले में कुछ प्राप्त करना -- प्रशंसा या सराहना के शब्द भी.

समझ लिजिये कि सेवा करते हुए आप कैसे दैनिक जीवन में धम्म का उपयोग करे यह सीख रहे हैं. सच मे, धम्म दैनिक जिम्मेदारियों से छुटकारा नहीं है. एक ध्यान शिविर या केंद्र की छोटी सी दुनिया में यहां के साधक और स्थितियों से सामना करते हुए धम्म के अनुसार काम करने को आप सीखते हुए, बाहर की दुनिया में उसी तरह से काम करनेका आप प्रशिक्षिण ले रहे है.किसी अन्य व्यक्ति के अवांछित व्यवहार के बावजूद, आप अपने मन के संतुलन को बनाए रखना और बदलेमे प्रेम और करुणा उत्पन्न करनेका अभ्यास कर रहे हो. आप को यहाँ प्रभुत्व हासिल करने की कोशिश कर ने का यह एक पाठ है. जो शिविर में बैठे हैं उनके जैसेही आप भी एक छात्र हैं.

दूसरों को विनम्रतापूर्वक सेवा देते वक्त सीखना याद रखे की, " बदले में कुछ भी पाने के बिना सेवा देनेका अभ्यास करने के लिए मैं यहाँ प्रशिक्षण में हूं. दूसरों धम्म से लाभ हो इसलिए मै काम कर रहा हूँ. एक अच्छा उदाहरण स्थापित करके, और ऐसा करने में अपने आप को भी मदद मिले इस लिये मुझे उन्हे मदद करने मिले.”

आप सब जो धम्म सेवा दे रहे है वे धम्म में बलवान हो. आप अपना सद्भाव, प्रेम और दूसरों के लिए करुणा विकसित करने के लिए सीख जाए. आप सब सच्ची शांति, सच्चा सद्भाव, और असली खुशी का आनंद लेनेके लिये धम्म में प्रगति करे.